गुलाम वंश के सभी शासको का संपूर्ण इतिहास

गुलाम वंश के शासकों की पूरी सूची और उनका शासनकाल (1206 से 1290 ई. तक)
1206 से 1290 ई. तक दिल्ली सल्तनत पर शासन करने वाले गुलाम वंश के सभी शासक और उनका शासनकाल।


भारत के मध्यकालीन इतिहास में कई बार उतार चढाव होते रहे हैं इन्ही बदलावों के बीच एक ऐसा समय आया कि जब दिल्ली की सत्ता गुलाम शासको के हाथों में आ गई और इसी वंश को गुलाम वंश या ममलूक वंश कहा गया। इस वंश की नींव कुतुबुद्दीन ऐबक ने रखी थी जो पहले मोहम्मद गौरी का गुलाम था और यही गुलाम आगे चलकर दिल्ली सल्तनत का पहला सुल्तान बना। 

गुलाम वंश का शासन काल 1206 ई से 1290 ई तक माना जाता है और यह समय लगभग 84 वर्षों का रहा जिसमें कुल 10 शासको ने दिल्ली की सत्ता संभाली। इसी वंश ने भारत में तुर्क शासन की नींव डाली और आने वाले शासको के लिए दिल्ली सल्तनत को मजबूत आधार दिया।

Note. इस वंश को गुलाम या ममलूक इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस वंश के सभी शासक या तो गुलाम थे या गुलाम रह चुके थे इसलिए इस वंश को गुलाम या ममलूक वंश कहा जाता है। ममलुक वंश का अर्थ: दास या गुलाम होता है।

गुलाम वंश की स्थापना 

  1. गुलाम वंश की स्थापना 1206 ई में हुई थी।
  2. गुलाम वंश का संस्थापक कुतुबुद्दीन ऐबक था।
  3. गुलाम वंश को ममलूक वंश भी कहा जाता है, क्योंकि इस वंश के सभी शासक मूल रूप से गुलाम थे।
  4. गुलाम वंश का शासन काल लगभग 84 वर्षों तक रहा।
  5. इस वंश का उदय मोहम्मद गौरी की मृत्यु के बाद हुआ।
  6. कुतुबुद्दीन ऐबक मोहम्मद गौरी का पहले सिर्फ एक गुलाम था और बाद में उसका सबसे भरोसेमंद सेनापति बन गया था।
  7. कुतुबुद्दीन ऐबक ने लाहौर को अपनी राजधानी बनाया।
  8. गुलाम वंश ने भारत में मुस्लिम शासक की नई डाली।
  9. गुलाम वंश ने जो प्रशासनिक ढांचा तैयार किया था। आगे चलकर खिलजी और तुगलक वंश ने वही प्रशासनिक ढांचा अपनाया।
  10. गुलाम वंश का शासन मुख्य रूप से उत्तर भारत तक सीमित रहा।
  11. यह वंश तुर्की दास सैनिकों की निष्ठा और पराक्रम का प्रतीक था।
  12. गुलाम वंश ने भारत में स्थाई सल्तनत शासन की शुरुआत की।
  13. और इस वंश ने पहली बार सुल्तान की उपाधि को स्थिर किया था।
  14. गुलाम शासको ने खुद को खलीफा का प्रतिनिधि बताया।
  15. यह शासक धार्मिक दृष्टि से कट्टर सुन्नी मुसलमान थे।
  16. गुलाम वंश के शासको को शुरू में तुर्क अमीरों और सरदारों का विरोध झेलना पड़ा।
  17. इस वंश के प्रमुख शासक कुतुबुद्दीन ऐबक, इल्तुतमिश और बलबन थे।
  18. गुलाम वंश में कुल 10 शासक हुए थे।
  19. और यह वंश भारत में तुर्की प्रभाव का प्रतीक माना जाता है।
  20. गुलाम वंश की शुरुआत राज्य विस्तार से हुई थी और इस वंश का अंत राजनीतिक षड्यंत्र से हुआ।
  21. गुलाम वंश की सबसे बड़ी उपलब्धि सुल्तान प्रणाली की स्थापना थी।

गुलाम वंश के सभी शासको के नाम


गुलाम वंश के सभी शासको के नाम कुछ इस प्रकार से हैं -

1. कुतुबुद्दीन ऐबक - 1206 ई से 1210 ई तक
2. आराम शाह - 1210 ई से 1211 ई तक
3. इल्तुतमिश - 1211 ई से 1236 ई तक
4. रजिया सुल्तान - 1236 ई से 1240 सीसी तक
5. मुजफ्फरुद्दिन बह्म शाह - 1240 ई से 1242 ई तक
6. अलाउद्दीन मसूद शाह - 1242 ई से वाला 146 ई तक
7. नसीरुद्दीन महमूद - 1246 ई से 1266 ई तक
8. गयासुद्दीन बलबन - 1266 ई से 1286 ई तक
9. शमसुद्दीन कैकूबाद - 1287 ई से 1290 ई तक
10. कैयुमर्स - 1290 (लगभग 6 से 7 महिने तक शासन किया)

1. कुतुबुद्दीन ऐबक 1206 ई से 1290 ई तक

  1. कुतुबुद्दीन ऐबक गुलाम वंश का संस्थापक और पहला शासक था।
  2. कुतुबुद्दीन ऐबक मूल रूप से तुर्की गुलाम था।
  3. कुतुबुद्दीन ऐबक को मोहम्मद गौरी ने खरीदा था और उसकी योग्यता और युद्ध कला को देखकर उसने कुतुबुद्दीन ऐबक को अपना सेनापति बना लिया।
  4. मोहम्मद गौरी की मृत्यु के बाद ऐबक ने दिल्ली की सत्ता संभाली।
  5. कुतुबुद्दीन ऐबक ने लाहौर को अपनी राजधानी बनाया।
  6. कुतुबुद्दीन ऐबक लाख बख्श कहा जाता था क्योंकि वह दान बहुत करता था।
  7. कुतुबुद्दीन ऐबक ने कुतुब मीनार की नींव रखी थी। 
  8. कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली में कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद का निर्माण करवाया था।
  9. कुतुबुद्दीन ऐबक का शासन काल लगभग 4 वर्ष का था।
  10. कुतुबुद्दीन ऐबक को बहुत बड़ा दयालु भी कहा जाता था।
  11. कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु 1210 ईस्वी में पोलो खेलते समय घोड़े से गिरने से हुई थी।
  12. कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के पश्चात दिल्ली की सत्ता आराम शाह के हाथों में आ गई थी।
  13. ऐबक को दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
  14. कुतुबुद्दीन ऐबक ने हिंदू मंदिरों को तुड़वाकर मस्जिदें भी बनवाए थी।

2. आराम शाह - 1210 ई से 1211 ई तक

  1. आराम शाह की पहचान को लेकर इतिहासकारों में मतभेद है कुछ इतिहासकार मानते हैं कि आराम शाह कुतुबुद्दीन ऐबक का पुत्र था और कुछ इतिहासकार मानते हैं कि आराम शाह कुतुबुद्दीन ऐबक का दामाद था।
  2. कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के पश्चात आरामशाह दिल्ली सल्तनत का शासक बना।
  3. आराम शाह गुलाम वंश का दूसरा शासक माना जाता है।
  4. आराम शाह का शासन काल केवल एक वर्ष 1210 से 1211 ई तक ही रहा।
  5. ऐबक की मृत्यु के बाद लाहौर के तुर्की अमीरों ने आराम शाह को सिंहासन पर बैठाया था।
  6. आराम शाह में शासन चलाने की योग्यता और सैन्य कौशल की कमी थी।
  7. इसकी कमजोर नेतृत्व क्षमता के कारण दिल्ली के तुर्क अमीर उसे असंतुष्ट थे।
  8. लाहौर के तुर्क आमीन आराम शाह से असंतुष्ट होकर ऐबक के दामाद इल्तुतमिश को गद्दी पर बैठान के लिए बुलाया।
  9. इल्तुतमिश उसे समय बदायूं का गवर्नर था।
  10. इल्तुतमिश और आरामशाह के बीच युद्ध हुआ और इस युद्ध में इल्तुतमिश ने आराम शाह को पराजित कर दिया और उसकी हत्या कर दी।
  11. आराम सा किस समय में दिल्ली सल्तनत राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रही थी।
  12. आराम शाह के शासनकाल में कोई भी बड़ा प्रशासनिक या सांस्कृतिक कार्य नहीं हुआ।
  13. इल्तुतमिश की विजय के साथ ही सल्तनत में स्थिरता आई और उसका शासन स्थापित हुआ।
  14. इतिहासकार आराम शाह को केवल नाम मात्र का शासक मानते हैं जिसका योगदान नगण्य था, अर्थात ना के बराबर।

3. इल्तुतमिश - 1211 ई से 1236 ई तक

  1. इल्तुतमिश का पूरा नाम शम्सुद्दीन इल्तुतमिश था।
  2. वह मूल रूप से एक तुर्क दास (गुलाम) था और बाद में दिल्ली सल्तनत का सुल्तान बना।
  3. उसे गुलाम वंश का सबसे सक्षम शासक माना जाता है।
  4. उसने 1211 ई. से 1236 ई. तक शासन किया।
  5. इल्तुतमिश को कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के बाद दिल्ली की गद्दी मिली।
  6. उसे शुरू में अमीरों और शासकों का विरोध झेलना पड़ा।
  7. उसने धीरे-धीरे विद्रोहों को दबाकर अपनी सत्ता को मजबूत किया।
  8. इल्तुतमिश ने लखनौती, बंगाल, और बदायूं पर सफल अभियान चलाए।
  9. उसने ग्वालियर और मालवा के कुछ हिस्सों पर भी कब्जा किया।
  10. इल्तुतमिश को दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है।
  11. उसने दिल्ली को राजधानी के रूप में विकसित किया।
  12. उसने सिक्कों की व्यवस्था को मजबूत किया और चाँदी का टंका तथा ताँबे का जीतल जारी किया।
  13. इन सिक्कों की व्यवस्था आगे चलकर भारतीय मुद्रा का आधार बनी।
  14. उसने 1229 ई. में बगदाद के खलीफा से "सुल्तान-ए-आजम" की उपाधि प्राप्त की।
  15. इल्तुतमिश ने दिल्ली में कुतुब मीनार का निर्माण पूरा कराया।
  16. उसने प्रशासन को व्यवस्थित करने के लिए इकता प्रथा को मजबूत किया।
  17. इल्तुतमिश ने "चालीसा" या "तुर्कान-ए-चहलगानी" नामक 40 अमीरों का एक समूह बनाया।
  18. इसने शासन में स्थिरता लाने का काम किया।
  19. इल्तुतमिश का शासनकाल दिल्ली सल्तनत के विस्तार और मजबूती का काल माना जाता है।
  20. 1236 ई. में उसकी मृत्यु हो गई और उसके बाद उसकी पुत्री रज़िया सुल्ताना दिल्ली की गद्दी पर बैठी।


4. रजिया सुल्तान - 1236 ई से 1240 सीसी तक

  1. रज़िया सुल्ताना, शम्सुद्दीन इल्तुतमिश की सबसे प्रमुख संतान और उनकी पुत्री थीं।
  2. वह भारत की पहली महिला शासक थी, जिसने दिल्ली सल्तनत की गद्दी संभाली।
  3. रज़िया का शासनकाल 1236 ई. से 1240 ई. तक रहा।
  4. इल्तुतमिश ने अपनी योग्यता को देखकर रज़िया को उत्तराधिकारी घोषित किया था।
  5. रज़िया को शासन के लिए प्रजा और दरबार में चुनौतीपूर्ण स्थिति का सामना करना पड़ा।
  6. दिल्ली के अमीरों और तुर्क सरदारों ने उसकी महिला होने के कारण शुरू में विरोध किया।
  7. रज़िया ने पुरुषों की तरह राजनीतिक और प्रशासनिक कार्य संभाला।
  8. उसने परदे की प्रथा (महिलाओं के लिए पर्दा) का पालन नहीं किया और खुलकर शासन किया।
  9. रज़िया ने विद्रोहियों और बागियों को दमन किया।
  10. उसने अपने शासन में प्रशासनिक सुधार किए और न्यायप्रिय शासक के रूप में प्रसिद्ध हुई।
  11. रज़िया ने अपनी सेना में हिंदी, तुर्क और अफगान सैनिकों को शामिल किया।
  12. उसने अपने प्रिय दास याकूत अबीसीनी को उच्च पद पर नियुक्त किया।
  13. याकूत को उच्च पद पर बैठाने से तुर्क अमीरों में नाराज़गी हुई।
  14. रज़िया ने बंगाल और मुल्तान के विद्रोहों को कुचलकर सल्तनत में स्थिरता बनाई।
  15. वह सैन्य अभियानों में भी व्यक्तिगत रूप से हिस्सा लेती थी।
  16. रज़िया की गद्दी पर बैठने की प्रक्रिया इतिहास में अद्वितीय मानी जाती है।
  17. 1240 ई. में अमीरों और विद्रोहियों के मिलकर रज़िया को सत्ता से हटा दिया।
  18. उसके बाद वह पकड़ी गई और मरने के बाद इतिहास में वीरांगना के रूप में याद की गई।
  19. रज़िया सुल्ताना की बहादुरी और प्रशासनिक क्षमता ने महिला सशक्तिकरण का उदाहरण पेश किया।
  20. रज़िया सुल्ताना को इतिहास में “दिल्ली सल्तनत की साहसी महिला शासक” के रूप में जाना जाता है।


5. मुजफ्फरुद्दिन बह्म शाह - 1240 ई से 1242 ई तक

  1. मुजफ्फरुद्दीन बहम शाह, दिल्ली सल्तनत के गुलाम वंश का शासक था।
  2. वह शम्सुद्दीन इल्तुतमिश का पोता और रज़िया सुल्ताना के परिवार से संबंधित था।
  3. बहम शाह का शासनकाल 1240 ई. से 1242 ई. तक था।
  4. रज़िया सुल्ताना की हत्या के बाद उसे दिल्ली का सुल्तान घोषित किया गया।
  5. उसका शासनकाल बहुत छोटा और राजनीतिक दृष्टि से चुनौतीपूर्ण था।
  6. वह इतिहास में एक कमजोर और प्रभावहीन शासक माना जाता है।
  7. दरबार के अमीरों और सरदारों ने उसके शासन में बहुत प्रभाव रखा।
  8. बहम शाह के समय में दरबार में लगातार सत्ता संघर्ष और विद्रोह होते रहे।
  9. उसने अपने शासनकाल में प्रशासनिक सुधार करने का प्रयास बहुत कम किया।
  10. बहम शाह ने बंगाल और पंजाब के कुछ विद्रोही क्षेत्रों पर केवल सांकेतिक नियंत्रण बनाए रखा।
  11. उसके शासनकाल में मंगोल और तुर्क सरदारों का खतरा लगातार बना रहा।
  12. बहम शाह के पास सेना और प्रशासन पर पूर्ण नियंत्रण नहीं था।
  13. दिल्ली सल्तनत की शक्ति उसके शासन में कमजोर पड़ने लगी।
  14. अमीरों और दरबार में विभाजन और साजिशें सामान्य स्थिति थीं।
  15. बहम शाह ने शासन में कोई मजबूत नीति नहीं अपनाई।
  16. उसने धार्मिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में विशेष योगदान नहीं दिया।
  17. बहम शाह का शासनकाल केवल दो वर्ष तक चला।
  18. 1242 ई. में उसे अमीरों और विद्रोहियों ने अपदस्थ किया।
  19. उसकी हत्या के बाद सत्ता का मार्ग अलाउद्दीन मसूद शाह के लिए खुला।
  20. मुजफ्फरुद्दीन बहम शाह का शासन गुलाम वंश के कमजोर शासकों और सत्ता संघर्ष के दौर का प्रतीक माना जाता है।


6. अलाउद्दीन मसूद शाह - 1242 ई से वाला 146 ई तक

  1. अलाउद्दीन मसूद शाह दिल्ली सल्तनत के गुलाम वंश (Slave Dynasty) का शासक था।
  2. वह शम्सुद्दीन इल्तुतमिश का पौत्र और रुक्नुद्दीन फिरोज शाह का पुत्र था।
  3. उसका शासनकाल 1242 ई. से 1246 ई. तक रहा।
  4. रजिया सुल्तान की मृत्यु (1240 ई.) और बह्राम शाह के पतन (1242 ई.) के बाद इसे सिंहासन पर बिठाया गया।
  5. मसूद शाह के शासनकाल में तुर्क अमीर (उच्च वर्ग के सरदार) बहुत शक्तिशाली हो गए थे।
  6. वह स्वयं प्रशासन और शासन की कला में कमजोर था।
  7. मसूद शाह अपने पूर्वज इल्तुतमिश की तरह सक्षम और संगठित शासक नहीं बन सका।
  8. उसका अधिकांश समय भोग-विलास और ऐश्वर्यपूर्ण जीवन में बीतता था।
  9. दरबार में शराब, नाच-गाने और विलासिता पर ध्यान देने के कारण उसका चरित्र कमजोर माना गया।
  10. शासन की वास्तविक शक्ति अमीरों और सरदारों के हाथ में चली गई थी।
  11. मसूद शाह ने अमीरों के समर्थन से सत्ता को बनाए रखने का प्रयास किया।
  12. लेकिन धीरे-धीरे अमीर भी उससे असंतुष्ट हो गए क्योंकि उसने मनमानी करना शुरू कर दी।
  13. उसके शासनकाल में राज्य की सीमाओं पर कई अस्थिरताएँ और विद्रोह हुए।
  14. 1246 ई. तक अमीरों का असंतोष इतना बढ़ गया कि उन्होंने उसके विरुद्ध साज़िश रच डाली।
  15. अंततः 1246 ई. में अमीरों ने उसे गद्दी से हटा दिया।
  16. उसकी जगह नासिरुद्दीन महमूद (इल्तुतमिश का पुत्र) को दिल्ली का सुल्तान बनाया गया।
  17. मसूद शाह को पदच्युत कर कैद में डाल दिया गया।
  18. कुछ समय बाद उसकी हत्या कर दी गई (या संभवतः कैद में ही मृत्यु हुई)।
  19. उसके शासनकाल को इतिहासकार "कमज़ोर और अव्यवस्थित शासन" के रूप में याद करते हैं।
  20. अलाउद्दीन मसूद शाह का काल गुलाम वंश में राजनीतिक अस्थिरता और अमीरों की शक्ति वृद्धि का स्पष्ट उदाहरण है।


7. नसीरुद्दीन महमूद - 1246 ई से 1266 ई तक

  1. इसका शासनकाल 1246 ई. से 1266 ई. तक चला।
  2. यह इल्तुतमिश का सबसे छोटा पुत्र था।
  3. इसे गद्दी पर बलबन (उलुग खाँ) के समर्थन से बैठाया गया।
  4. नसीरुद्दीन महमूद खुद एक धार्मिक, सरल और विनम्र स्वभाव का शासक था।
  5. उसने शासन का पूरा दायित्व अपने वजीर ग़ियासुद्दीन बलबन को सौंप दिया था।
  6. यही कारण है कि बलबन वास्तविक शासक के रूप में सत्ता चला रहा था।
  7. नसीरुद्दीन महमूद का जीवन अधिकतर धार्मिक कार्यों, इबादत और कुरान पढ़ने में बीता।
  8. वह अपनी धार्मिकता और नम्रता के लिए प्रजाजनों में लोकप्रिय था।
  9. इतिहासकार उसे एक आदर्श मुस्लिम शासक मानते हैं, लेकिन वह राजनीतिक दृष्टि से प्रभावी शासक नहीं था।
  10. बलबन ने उसके शासनकाल में मंगोल आक्रमणों से उत्तर-पश्चिमी भारत की रक्षा की। 
  11. उसके समय में दरबार की सारी प्रशासनिक व्यवस्था बलबन के हाथों में केंद्रित थी।
  12. नसीरुद्दीन महमूद का दरबार कला और विद्वानों का केंद्र नहीं था, क्योंकि वह धार्मिक मामलों में अधिक समय देता था।
  13. उसकी पत्नी का नाम सुल्ताना उम्म-ए-नसीर था, जो शासन-व्यवस्था में बलबन की समर्थक मानी जाती थी।
  14. नसीरुद्दीन महमूद को इतिहास में एक कट्टर धार्मिक शासक के रूप में याद किया जाता है।
  15. उसने दरबार की राजनीति और षड्यंत्रों से स्वयं को दूर रखा।
  16. उसके शासनकाल के 20 वर्षों में राजनीतिक स्थिरता बलबन की कठोर नीतियों की वजह से बनी रही।
  17. नसीरुद्दीन महमूद की 1266 ई. में मृत्यु हो गई।
  18. उसकी मृत्यु के बाद बलबन ने स्वयं दिल्ली सल्तनत की गद्दी संभाल ली।
  19. उसे सल्तनत इतिहास में एक नाममात्र का शासक (Nominal King) माना जाता है, जबकि वास्तविक सत्ता बलबन के हाथों में रही।

8. गयासुद्दीन बलबन - 1266 ई से 1286 ई तक

  1. गयासुद्दीन बलबन का वास्तविक नाम उलूग ख़ाँ था।
  2. वह मूल रूप से तुर्क था और इल्बरी (गुलाम वंश) से संबंधित था।
  3. बलबन प्रारंभ में तुर्क-ए-चालिस (चालीसा दल) का सदस्य था।
  4. नसीरुद्दीन महमूद (1246–1266 ई.) के शासनकाल में बलबन को वज़ीर (प्रधान मंत्री) बनाया गया।
  5. नसीरुद्दीन महमूद की मृत्यु के बाद 1266 ई. में बलबन स्वयं सिंहासन पर बैठा।
  6. उसका शासनकाल 1266 ई. से 1286 ई. तक चला।
  7. बलबन ने अपने शासन में कठोर कानून और अनुशासन स्थापित किया।
  8. उसने राजसत्ता की गरिमा बढ़ाने के लिए “जिल-ए-इलाही” (राजा ईश्वर का साया है) की नीति अपनाई।
  9. बलबन ने दरबार में सिजदा (झुकना) और पैबोस (पाँव छूना) की प्रथा शुरू की।
  10. वह अपने शासन को “जबर और सख़्ती” से चलाने में विश्वास रखता था।
  11. बलबन ने दिल्ली सल्तनत की सीमाओं की रक्षा के लिए मंगोलों से संघर्ष किया।
  12. उसने मंगोल आक्रमणों को रोकने के लिए सीमा क्षेत्रों में सैनिक चौकियाँ बनवाईं।
  13. बलबन ने विद्रोहों को कठोरता से दबाया और प्रांतीय गवर्नरों पर सख्त नियंत्रण रखा।
  14. उसने अपने शासन में राज्य को केंद्रीकृत किया और सामंती शक्तियों को कमजोर किया।
  15. बलबन ने अपनी सेना को मजबूत किया और “ख़ुफ़िया विभाग (Barid system)” का विकास किया।
  16. उसका शासन “भय और दंड नीति” के लिए प्रसिद्ध है।
  17. बलबन ने साहित्य और विद्वानों का भी संरक्षण किया। प्रसिद्ध फ़ारसी कवि अमीर ख़ुसरो उसके दरबार से जुड़े रहे।
  18. बलबन ने अपने शासनकाल को न्याय और अनुशासन पर आधारित रखा।
  19. 1286 ई. में बलबन की मृत्यु हो गई।
  20. उसकी मृत्यु के बाद दिल्ली सल्तनत की शक्ति कुछ समय के लिए कमजोर हो गई।

9. शमसुद्दीन कैकूबाद - 1287 ई से 1290 ई तक

  1. शमसुद्दीन कैकूबाद, गयासुद्दीन बलबन का पौत्र था।
  2. वह बलबन के बड़े बेटे बुगरा खाँ का पुत्र था।
  3. बलबन की मृत्यु (1287 ई.) के बाद, उसे दिल्ली के सिंहासन पर बैठाया गया।
  4. कैकूबाद का पूरा नाम "नासिरुद्दीन कैकूबाद" था।
  5. शासनकाल: 1287 ई. से 1290 ई. तक।
  6. वह शासन संभालने के समय बहुत कम उम्र (किशोर अवस्था) का था।
  7. कमजोर और विलासी स्वभाव का शासक था।
  8. शासन कार्यों की जिम्मेदारी अधिकतर उसके दरबारियों और अमीरों ने संभाली।
  9. उसने सत्ता के वास्तविक कार्यों में कोई रुचि नहीं दिखाई।
  10. कैकूबाद का समय राजनीतिक षड्यंत्रों और अमीरों की आपसी प्रतिस्पर्धा से भरा था।
  11. वह मद्यपान और भोग विलास में डूबा रहता था।
  12. उसकी दुर्बलता के कारण सुल्तानत की शक्ति कमज़ोर होती चली गई।
  13. बलबन के समय जो कठोर अनुशासन और मजबूत प्रशासन था, वह कैकूबाद के समय ढह गया।
  14. शासक की कमजोरी से प्रांतीय सूबेदार और सरदार स्वतंत्रता की ओर बढ़ने लगे।
  15. तुर्की अमीरों ने शासन की बागडोर अपने हाथ में ले ली।
  16. इसी दौरान खिलजी गुट का उदय हुआ, जिसने सत्ता पर नियंत्रण पाना शुरू किया।
  17. जलालुद्दीन फ़िरोज़ खिलजी ने इस समय सबसे अधिक शक्ति प्राप्त कर ली।
  18. कैकूबाद को लकवा (Paralysis) हो गया था, जिससे उसकी हालत और खराब हो गई।
  19. अंततः 1290 ई. में जलालुद्दीन फ़िरोज़ खिलजी ने उसकी हत्या करवा दी।

10. कैयुमर्स - 1290 (लगभग 6 से 7 महिने तक शासन किया)

  1. कैयुमर्स गुलाम वंश का अंतिम शासक था।
  2. इसका शासनकाल बहुत ही अल्पकालिक रहा (लगभग 6–7 महीने)।
  3. यह शमसुद्दीन कैकूबाद का पुत्र था।
  4. कैकूबाद की मृत्यु के बाद कैयुमर्स को गद्दी पर बैठाया गया।
  5. उस समय कैयुमर्स की आयु बहुत कम थी (नाबालिग था)।
  6. शासक होने के बावजूद वास्तविक सत्ता उसके हाथ में नहीं थी।
  7. सत्ता पर अमीरों और सरदारों का पूर्ण नियंत्रण था।
  8. दरबार के कई अमीर कैयुमर्स के शासन से असंतुष्ट थे।
  9. उसके शासनकाल में दिल्ली सल्तनत की राजनीतिक स्थिति बहुत कमजोर थी।
  10. गद्दी संघर्ष और षड्यंत्रों का दौर शुरू हो गया था।
  11. अफगान सरदार "जलालुद्दीन खिलजी" ने इस स्थिति का लाभ उठाया।
  12. जलालुद्दीन खिलजी ने कैयुमर्स को हटाकर स्वयं सत्ता ग्रहण की।
  13. इस प्रकार गुलाम वंश (ममलूक वंश) का अंत हो गया।
  14. कैयुमर्स इतिहास में केवल नाममात्र का शासक माना जाता है।
  15. उसने कोई बड़ा युद्ध या प्रशासनिक कार्य नहीं किया।
  16. उसके शासनकाल में न तो कोई आर्थिक सुधार हुआ और न ही विस्तार।
  17. अल्पायु और अनुभवहीनता के कारण वह असफल रहा।
  18. दिल्ली सल्तनत में गुलाम वंश के बाद "खिलजी वंश" की शुरुआत हुई।
  19. कैयुमर्स की मृत्यु या गद्दीच्युत होने के बाद उसका राजनीतिक महत्व समाप्त हो गया।
  20. इतिहासकारों ने उसे एक कमजोर और कठपुतली शासक बताया है।

निष्कर्ष

गुलाम वंश का इतिहास भारतीय उपमहाद्वीप में इस्लामी शासन की मजबूत नींव रखने वाला अध्याय है। इसकी शुरुआत 1206 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक से हुई और अंत 1290 ई. में कैयुमर्स के साथ हुआ। इस वंश के शासकों ने अनेक कठिनाइयों और चुनौतियों के बावजूद दिल्ली सल्तनत की बुनियाद को खड़ा किया।

इल्तुतमिश जैसे योग्य शासकों ने सल्तनत को स्थिरता दी और रज़िया सुल्ताना जैसी शासक ने यह सिद्ध किया कि महिला भी गद्दी पर बैठकर शासन चला सकती है। बलबन ने कठोर कानून और सुदृढ़ प्रशासनिक व्यवस्था के माध्यम से शासन की शक्ति को चरम पर पहुँचाया। वहीं, कैकूबाद और कैयुमर्स जैसे कमजोर शासकों की वजह से यह वंश धीरे-धीरे ढलान पर आ गया।

गुलाम वंश का महत्व केवल इसके प्रशासनिक ढांचे या सैन्य शक्ति में नहीं था, बल्कि इसमें इस बात की मिसाल भी है कि गुलाम रह चुका व्यक्ति भी दिल्ली की गद्दी पर बैठ सकता है। यह वंश लगभग 84 वर्षों तक सत्ता में रहा और भारतीय इतिहास में एक नई राजनीतिक परंपरा स्थापित कर गया।

अंततः 1290 ई. में कैयुमर्स के शासन के साथ गुलाम वंश का पतन हुआ और दिल्ली सल्तनत में खिलजी वंश का उदय हुआ। इस प्रकार गुलाम वंश ने भारतीय इतिहास को स्थिरता, अनुशासन और प्रशासनिक व्यवस्था की मजबूत नींव प्रदान की, जो आगे आने वाले वंशों के लिए मार्गदर्शक बनी। 

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