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"मोहनजोदड़ो का प्रसिद्ध महान स्नानागार – सिंधु घाटी सभ्यता (3300 ईसा पूर्व से 1300 ईसा पूर्व)" |
हड़प्पा सभ्यता जिसे सिंधु घाटी सभ्यता या सिंधु सरस्वती सभ्यता कहा जाता है यह विश्व की सबसे प्राचीन और उन्नत नगरी सभ्यताओं में से एक थी इस सभ्यता की उत्पत्ति सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों के किनारे हुई थी वर्तमान समय के अनुसार यह सभ्यता पाकिस्तान उत्तर पश्चिम भारत अफगानिस्तान और ईरान के कुछ हिस्सों में फैली हुई थी
हड़प्पा सभ्यता से संबंधित जितने भी प्रमाण मिले हैं उसे यह अनुमान लगाया जाता है कि यह सभ्यता लगभग 3300 ईसा पूर्व से 1300 इस पूर्व के बीच फली फूली थी और इस सभ्यता का प्रारंभिक चरण 3300 ईसा पूर्व से 2600 इस पूर्व के बीच का समय माना जाता है इस सभ्यता का परिपक्व कल (स्वर्ण युग) 2600 ईसा पूर्व से 1900 इस पूर्व के बीच का माना जाता है अंतिम चरण पतन युग 1900 ईसा पूर्व से 1300 इस पूर्व के बीच का समय माना जाता है
यह सभ्यता अपने सुव्यवस्थित नगर नियोजन पक्की ईंटों के निर्माण सड़क व्यवस्था जल निकासी तंत्र मोती और आभूषण निर्माण और अपनी रहस्यमई लिपि के लिए प्रसिद्ध थी
हड़प्पा सभ्यता का इतिहास
सभ्यता की उत्पत्ति
हड़प्पा सभ्यता की उत्पत्ति सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों के किनारे उपजाऊ मैदाने में हुई थी प्रारंभ में वहां के लोग कृषि पशुपालन और स्थानीय व्यापार पर आधारित छोटे-छोटे गांव में रहते थे समय के साथ तकनीकी प्रगति और संसाधनों की उपलब्धता ने इसे एक सुसंगठित नगरीय सभ्यता में बदल दिया
काल खंड और समय अवधि
इतिहास कारो और पुरातत्व विदो ने इस सभ्यता को विकास और पतन के आधार पर तीन मुख्य चरणों में विभाजित किया है
पूर्व हड़प्पा काल लगभग 3300 ईसा पूर्व से 2600 ईसा पूर्व तक
यह जो समय था 3300 ईसा पूर्व से 2600 ईसा पूर्व तक का यह सभ्यता का प्रारंभिक चरण था।
इस प्रारंभिक चरण में गांव में स्थाई निवास कृषि पशुपालन और मिट्टी के बर्तनों का निर्माण हुआ था।
नगर योजना की शुरुआत इसी का में हुई थी।
इस समय का प्रमुख स्थल कोट दीजी और अमरी है।
प्रमुख हड़प्पा काल लगभग 2600 ईसा पूर्व से 1900 ईसा पूर्व तक
यह जो समय था यह सभ्यता का स्वर्ण युग था क्योंकि यह सभ्यता इसी समय में फली फूली थी
इसी समय में सुव्यवस्थित नगर योजना, पक्की ईंटों के घर, चौड़ी सड़के, और उन्नत जल निकासी प्रणाली का विकास हुआ
बड़े पैमाने पर व्यापार, हस्तशिल्प, धातु-उद्योग मोहरें और लिपि का प्रयोग इसी समय हुआ
इस काल के प्रमुख नगर हड़प्पा मोहनजोदड़ो धोलावीरा लोथल कालीबंगन राखीगढ़ी।
उत्तर हड़प्पा का लगभग 1900 ईसा पूर्व से 1300 ईसा पूर्व तक
इस काल में सभ्यता का पतन शुरू हुआ
इस काल में नगर योजना और वास्तुकला का स्थर गिरा घरों के निर्माण के लिए पक्की ईंटों की जगह कच्ची ईंटों का प्रयोग बढा
लोग छोटे-छोटे गांव में बसने लगे और लंबी दूरी का व्यापार काम हो गया।
इस काल के प्रमुख स्थल चान्हू दरो।
खोज
1856 में ब्रिटिश इंजीनियरों ने रेलवे लाइन के निर्माण के दौरान प्राचीन पक्की ईंटो के अवशेष देखे थे लेकिन उस समय इसका महत्व नहीं समझ गया।
- 1921 में दयाराम साहनी ने पाकिस्तान के पंजाब में हड़प्पा स्थल की खुदाई की थी
- 1922 में राखलदास बनर्जी ने पाकिस्तान के सिंध में मोहनजोदड़ो की खुदाई की थी
इन खोजो से यह स्पष्ट हुआ कि भारतीय उपमहाद्वीप में एक अत्यंत उन्नत नगरीय सभ्यता विद्यमान थी
हड़प्पा सभ्यता का भौगोलिक क्षेत्र
हड़प्पा सभ्यता का विस्तार लगभग 1250000 वर्ग किलोमीटर तक फैला हुआ था यह सभ्यता मुख्य रूप से सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों झेलम चिनाब रावी व्यास और सतलुज तथा घग्गर हकरा नदी के किनारे पर विकसित हुई थी।
भौगोलिक सीमाएं
- उत्तर में जम्मू कश्मीर के मंडा स्थल तक।
- दक्षिण में गुजरात के धोलावीरा और लोथल तक।
- पश्चिम में बलूचिस्तान के सुत्कागेंडोर (पाक ईरान) की सीमा तक।
- पूर्व में उत्तर प्रदेश के आलमगीरपुर तक।
आधुनिक देशों में विस्तार
वर्तमान समय में हड़प्पा सभ्यता के अवशेष इन देशों में पाए जाते हैं-
- पाकिस्तान में हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, चान्हूदड़ो और कोट दिजी के अवशेष मिलते हैं।
- भारत में राखीगढ़ी, कालीबंगन, लोथल, धोलावीरा और आलमगीरपुर के अवशेष मिलते हैं।
- अफगानिस्तान में शोर्टु गई के अवशेष मिलते हैं।
- ईरान में सुत्कागेंडोर के अवशेष मिलते हैं।
हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख नगर
हड़प्पा सभ्यता का विस्तार इतना विशाल था कि इसमें कई बड़े और छोटे नगर शामिल थे नीचे हड़प्पा सभ्यता के सभी प्रमुख नगरों का विवरण दिया गया है
1. हड़प्पा
हड़प्पा सभ्यता का जो नाम है वह हड़प्पा नगर के नाम पर पड़ा था अर्थात हड़प्पा उसी सभ्यता का एक प्रमुख नगर है इसलिए उस सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता कहा जाता है यह नगर वर्तमान समय में पाकिस्तान के पंजाब में स्थित है और इसकी खोज 1921 में दयाराम साहनी ने की थी।
हड़प्पा नगर में पक्की ईंटों के मकान सुव्यवस्थित सड़के अनाज के भंडार तांबे कांसे की वस्तुएं मिली और यहां से गेहूं, जौ और मटर जैसे अनाज के अवशेष भी मिले थे जो उस समय की कृषि व्यवस्था को दर्शाते हैं
2. मोहनजोदड़ो
मोहनजोदड़ो का अर्थ है मृतकों का टीला यह नगर पाकिस्तान के सिंह में स्थित है और सन 1922 में राखल दास बनर्जी ने इसकी खोज की थी यहां का महान स्नानागार ग्रेट बाथ विश्व प्रसिद्ध है जिसे धार्मिक या सामाजिक अनुष्ठानों के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
मोहनजोदड़ो से नृत्य करती हुई युक्ति की कांस्य मूर्ति कपास के रेशों के प्रमाण और सुंदर मोहरें मिली हैं जो इस नगर की उन्नत कला को दर्शाते हैं।
3. धोलावीरा
धोलावीरा गुजरात के कच्छ जिले में स्थित है और इसकी खोज सन 1967 में जेपी जोशी ने की थी यह नगर तीन भागों में विभाजित था किला मध्य भाग और निचला नगर यहां से एक बड़ा पत्थर का शिलालेख singboard मिला है जिसमें हड़प्पा लिपि अंकित है धोलावीरा की जल प्रबंधन प्रणाली अत्यंत विकसित थी जिसमें पानी संग्रहण और संरक्षण के लिए बड़े टैंक और नहरे बनाई गई थी।
4. लोथल
लोथल गुजरात में स्थित और 1954 में एस.आर.राव ने इसकी खोज की। यह नगर समुद्री व्यापार का प्रमुख केंद्र था यहां से एक प्राचीन गोदी मिली है जो विश्व की सबसे पुरानी ज्ञात गोदियों में से एक है लोथल मनकों, आभूषणों और हाथी दांत की वस्तुओं के निर्माण का केंद्र भी था, जिससे यह अंतरराष्ट्रीय व्यापार में महत्वपूर्ण स्थान रखता था।
5. राखीगढ़ी
राखीगढ़ी हरियाणा में स्थित है और वर्तमान में इसे हड़प्पा सभ्यता का सबसे बड़ा ज्ञात स्थल माना जाता है यहां से मानव कंकाल, मिट्टी के बर्तन, आभूषण और सीप के बने शिल्प मिले हैं राखीगढ़ी से मिले अवशेष बताते हैं कि यह नगर राजनीतिक और आर्थिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण था।
6. कालीबंगन
कालीबंगन राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में स्थित है इसका नाम काले रंग की चूड़ियों वाला स्थान है। यहां से कृषि के प्रारंभिक प्रमाण जैसे हाल से जोत गए खेतों के निशान मिले हैं इसके अलावा अग्निकुंड और धार्मिक विधि के अवशेष भी यहां पाए गए हैं जो धार्मिक क्रियो का संकेत देते हैं।
7. आलमगीरपुर
अलमगीरपुर उत्तर प्रदेश में स्थित है और इसे हड़प्पा सभ्यता का सबसे पूर्वी स्थल माना जाता है यहां से पक्की ईंटे, मिट्टी के बर्तन और आभूषण बनाने के प्रमाण मिले हैं यह स्थल दर्शाता है कि हड़प्पा सभ्यता का प्रभाव गंगा जमुना के मैदान तक पहुंचा था।
8. सुत्कागेंडोर
सुत्कागेंडोर पाकिस्तान और ईरान की सीमा पर बलूचिस्तान में स्थित है यह हड़प्पा सभ्यता का पश्चिमी सीमा पर स्थित नगर था और समुद्री व्यापार का एक प्रमुख केंद्र था यहां से समुद्री मार्ग से आने वाले व्यापारिक सामानों के प्रमाण मिले हैं
9. चान्हूदड़ो
चान्हूदड़ो पाकिस्तान के सिंध में स्थित है और यह मोहनजोदड़ो के निकट है यहां से मनको, खिलौने और मिट्टी के बर्तनों का निर्माण स्थल मिला है। यह नगर विशेष रूप से हस्तशिल्प और छोटे उद्योगों के लिए जाना जाता है।
10. कोट दीजी
कोट दीजी पाकिस्तान के सिंध में स्थित है और यह पूर्व हड़प्पा काल का प्रमुख स्थल है यहां से किलेबंदी, मिट्टी के बर्तन में प्रारंभिक नगर योजना के प्रमाण मिले हैं, जो यह दर्शाते हैं कि हड़प्पा सभ्यता से पहले भी यहां संगठित बस्तियां थी।
हड़प्पा सभ्यता की भाषा और लिपि
हड़प्पा सभ्यता की भाषा और लिपि आज भी पुरातत्व और इतिहास के सबसे बड़े रहस्यों में से एक हैं इस सभ्यता के लोगों ने एक विशिष्ट लिपि का प्रयोग किया जिसे आज तक पूरी तरह पढ़ा नहीं जा सका है।
लिपि की विशेषताएं
प्रकृति: यह लिपि चित्रलिपि के समान मानी जाती है जिसमें चिन्ह और आकृतियां किसी वस्तु पर जैसे हाथी के दांत और बर्तनों में बनी होती थी और ये आकृतियां किसी विचार या ध्वनि का प्रतिनिधित्व करती हैं।
लिखने की दिशा: अधिकांश विद्वानों का मानना है की यह लिपि दाएं से बाएं की ओर लिखी जाती थी और कुछ विद्वानों ने कहा है कि यह लिपि ऊपर से नीचे की ओर लिखी जाती थीं।
चिह्नो की संख्या: अभी तक लगभग 400 से 450 अलग-अलग चिन्ह पाए गए हैं
लेखन माध्यम: इस लिपि का प्रयोग मुख्यतः मोहरों, मिट्टी के बर्तनों, ताम्र पत्र और हाथी दांत की पत्तियों पर किया जाता था।
भाषा
हड़प्पा सभ्यता की भाषा के बारे में कई विद्वानों ने अपने अपने सिद्धांत प्रस्तुत किए गए हैं, क्योंकि किसी ने अभी तक इस लिपि को को पढ़ा या समझा नहीं है।इस भाषा को लेकर अनेक विद्वानों ने अपने अपने मत दिए हैं, जो इस प्रकार से है-
द्रविड़ भाषा सिद्धांत: कई विद्वानों का मानना है कि हड़प्पा वासी प्राचीन द्रविड़ भाषा का प्रयोग करते थे।
मुंडा भाषा सिद्धांत: कुछ इतिहासकार इस भाषा को ऑस्ट्रोएशियाटिक भाषाओं से जोड़ते हैं।
स्वतंत्र भाषा सिद्धांत: कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि यह एक स्वतंत्र भाषा थी जो बाद में लुप्त हो गई।
हड़प्पा सभ्यता का प्रशासन और कानून व्यवस्था
हड़प्पा सभ्यता का प्रशासनिक ढांचा बहुत ही मजबूत और सुव्यवस्थित था यद्यपि हमें किसी लिखित रूप से प्रत्यक्ष जानकारी नहीं मिली है, लेकिन जो भी वहां पर प्रमाण या साक्ष्य मिले हैं उसके आधार पर इतिहासकारों का मानना है कि यहां केंद्रीकृत सत्ता और सुदृढ़ कानून व्यवस्था विद्यमान थी।
प्रशासनिक ढांचा
केंद्रीकृत सत्ता: नगर योजना एक समान निर्माण सामग्री मानकीकृत तौल और माप यह दर्शाते हैं कि सभी नगर एक केंद्रीय सत्ता के अधीन थे
शासक वर्ग: अब तक किसी राजा की प्रतिमा या राज दरबार के स्पष्ट प्रमाण नहीं मिले परंतु संभवत यहां की सत्ता की बागडोर अवश्य कोई व्यापारी वर्ग या पुरोहित वर्ग के लोग शासन करते होंगे।
नगर योजना: सड़कों का जल, जल निकासी प्रणाली, अनाज भंडार और सामान आकार यह इस बात का प्रमाण है की वहां जो शासक वर्ग था उसने प्रशासनिक नियंत्रण बना रखा था।
प्रमुख प्रशासनिक केंद्र: मोहनजोदड़ो हड़प्पा धोलावीरा जैसे नगर प्रशासनिक और आर्थिक दृष्टि से प्रमुख केंद्र थे
कानून व्यवस्था
कानून का पालन: पूरे क्षेत्र में तौल माप और ईंटों के आकार का एक रूप होना इस बात का प्रमाण है कि बड़े नियम लागू थे।
व्यापारिक नियंत्रण: मोहरों और ताम्र पत्तों पर अंकित प्रतीक संभवत लेनदेन और स्वामित्व को नियंत्रित करने के लिए प्रयुक्त होते थे।
अपराध और दंड: प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं मिले हैं, परंतु सुव्यवस्थित्त समाज और नगरीय स्वच्छता यह दर्शाती है कि अपराध दर कम थी और कानून का पालन अनिवार्य था।
न्याय व्यवस्था: संभव है कि विवाद निपटान और कानून लागू करने की जिम्मेदारी स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों या परिषद के पास थी।
प्रशासनिक विशेषताएं
मानकीकरण: पूरे साम्राज्य में एक जैसे तौल माप और ईंटों के आकार का उपयोग।
संगठित व्यापार: आंतरिक और बाहरी व्यापार पर नियंत्रण समुद्री और स्थलीय मार्गों का प्रबंधन
जनकल्याण कार्य: जल प्रबंधन, स्वच्छता, और सार्वजनिक भवनों का निर्माण।
सुरक्षा व्यवस्था: कुछ नगरों में किले बंदी और परकोटे मिलते हैं, जो बाहरी खतरों से रक्षा का संकेत देते हैं।
हड़प्पा सभ्यता की प्रमुख विशेषताएं
हड़प्पा सभ्यता (2600 ईसा पूर्व से 1900 ईसा पूर्व) विश्व की सबसे प्राचीन नगरी सभ्यता में से एक थी यह सभ्यता अपनी सुव्यवस्थित नगर योजना, उन्नत कृषि, व्यापारिक नेटवर्क, धार्मिक मान्यताओं और कला कौशल के लिए जानी जाती थी।
नगर योजना
ग्रिड प्रणाली: नगरों को उत्तर दक्षिण और पूर्व पश्चिम दिशा में सीधी, एक दूसरे को समकोण पर काटती सड़कों के साथ बसाया गया था।
दो भागों में विभाजन: नगर का ऊपरी भाग किला क्षेत्र प्रशासनिक और धार्मिक कार्यों के लिए और निचला भाग आम जनता के लिए आवास के लिए था।
पक्की ईंटों का प्रयोग: सभी मकान और सार्वजनिक इमारतें पक्की ईंटों से बनी थी। ईंटों का आकार मानकीकृत तथा 1:2:4 अनुपात में थी।
जल निकासी प्रणाली: प्रत्येक घर से निकलने वाली नालियां मुख्य नालियों से जुड़ी थी जो ढकी हुई रहती थी।
सार्वजनिक भवन: मोहनजोदड़ो का महान स्नानागार हड़प्पा और धोलावीरा के अनाज भंडार।
कृषि और सिंचाई पद्धति
मुख्य फैसले: गेहूं, जौ, मटर, तिल, कपास (कपास की सबसे प्राचीन खेती के प्रमाण लोथल से मिले हैं)।
सिंचाई: नदियों के किनारे बसने से प्राकृतिक सिंचाई होती थी, साथ ही कुओं और जलाशयों का उपयोग।
हल का प्रयोग: कालीबंगन में हल से जूते गए खेतों के प्रमाण मिले हैं।
अतिरिक्त फैसले: खजूर, तरबूज, सरसों और बाजर।
व्यापार और मुद्रा
आंतरिक व्यापार: अलग-अलग नगरों के बीच वस्तुओं का आदान-प्रदान अनाज, कपड़ा, मिट्टी के बर्तन, मनके और धातु की वस्तुएं।
बाहरी व्यापार: मेसोपोटामिया सुमेर फारस और मध्य एशिया से व्यापार लोथल सुत्कागेंडोर और बालाकोट समुद्री व्यापार केंद्र थे।
विनिमय प्रणाली: धातु की मुद्राओं का उपयोग नहीं होता था बल्कि वस्तु विनिमय और मोहरों द्वारा लेनदेन होता था।
मुख्य निर्यात वस्तुएं: कपास, मनके, आभूषण, तांबे कांसे के औजार, मिट्टी के बर्तन आदि।
मूर्ति कला
- कांस्य की नृत्य करती युवती मोहनजोदड़ो
- पाषाण की पुजारी राजा की प्रतिमा मोहनजोदड़ो
- मिट्टी की खिलौने गाड़ियां और जानवर
आभूषण: सोना, चांदी, तांबा, कीमती पत्थर, सीप और हड्डी से बने हार, बाजूबंद झुमके और मनके।
मिट्टी के बर्तन: लाल मृदभांड पर काले रंग की आकृतियां, ज्यामितिय डिजाइन और पशु आकृतियां।
मोहरें: स्टिएटाइट से बनी मोहरें, जिन पर पशु चित्र और लिपि अंकित थी।
हड़प्पा सभ्यता में विज्ञान और तक नीक
हड़प्पा सभ्यता केवल सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि विज्ञान और तकनीकी उन्नति के मामले में भी अत्यंत विकसित थी पुरातात्विक खोजो से यह स्पष्ट होता है कि यहां के लोग निर्माण तकनीक मानकीकृत तौल माप और शहरी नियोजन में उच्च स्तर की दक्षता रखते थे।
निर्माण तकनीक
मानकीकृत ईंटें: पकी हुई और कच्ची ईंटों का उपयोग, जिनका अनुपात 1:2:4 था, जिससे मजबूत और संतुलित निर्माण संभव हुआ।
नगर योजना में इंजीनियरिंग कौशल: ग्रिड प्रणाली, जल निकासी नेटवर्क, और सड़कों की समकोणीय योजना उच्च इंजीनियरिंग ज्ञान का प्रमाण है।
सार्वजनिक निर्माण: महान स्नानागार, अनाज भंडार, कुएं, जलाशय और किले बंदी जैसी संरचनाएं उन्नत निर्माण तकनीक को दर्शाती हैं।
जल निकासी प्रणाली: प्रत्येक घर से जुड़ी ढकी हुई नालियां और जल प्रवाह के लिए ढलान युक्त डिजाइन जल प्रबंधन का श्रेष्ठ उदाहरण है।
सामग्री का उपयोग: निर्माण में पकी ईंटे, कच्ची ईंटे, पत्थर, लकड़ी और चूने का मिश्रण।
वजन और माप प्रणाली
मानकीकरण: पूरे सभ्यता क्षेत्र में एक समान वजन और माप का प्रयोग, जो केंद्रीकृत प्रशासन और वैज्ञानिक सोच को दर्शाता है।
वजन
- पत्थर से बने मानकीकृत घनाकार और बेलनाकार वजन।
- 16 के गुणकों को पर आधारित (जैसे 16 32 64 जो) दशमलव और द्विधारी पद्धति की समझ को दर्शाता है।
माप
- धोलावीरा और लोथल से मिली हाथी दांत माप छड़ से रेखीय माप का ज्ञान।
- माप की इकाइयां आज के इंच और सेंटीमीटर के करीब थी।
व्यापार और निर्माण में प्रयोग: वजन और माप प्राणली का उपयोग न केवल व्यापार में बल्कि ईट निर्माण और भवनों के डिजाइन में भी होता था।
हड़प्पा सभ्यता का सामाजिक जीवन
हड़प्पा सभ्यता का सामाजिक जीवन सुव्यवस्थित, समृद्ध और विविधता पूर्ण था यहां के लोग शहरी संस्कृति के अनुरूप उच्च जीवन स्तर अपनाते थे। वस्त्र, भोजन और मनोरंजन के प्रमाण विभिन्न पुरातात्विक स्थलों से और कलाकृतियों से मिलते हैं।
वस्त्र और पहनावा
वस्त्र सामग्री: कपास का प्रयोग सबसे अधिक होता था। कपास की खेती का सबसे प्राचीन प्रमाण हड़प्पा सभ्यता से ही मिलता है ऊन का प्रयोग भी ठंडे क्षेत्रों में किया जाता था।
पुरुषों का पहनावा: आमतौर पर कमर के चारों ओर लपेटा जाने वाला वस्त्र धोती जैसा कभी-कभी ऊपरी अंग पर चादर या सॉल। यह सवाल
महिलाओं का पहनावा: लपेटकर पहना जाने वाला वस्त्र आभूषणों के साथ।
आभूषण: सोना, चांदी, तांबा, कांसा, मनके, सीप और कीमती पत्थरों से बने हार, बाजूबंद, झुमके, पायल और अंगूठियां पुरुष और महिलाएं दोनों आभूषण पहनते थे।
सौंदर्य प्रसाधन: कंघी, शीशा, काजल और इत्र का प्रयोग।
भोजन
मुख्य अनाज: गेहूं, जौ, चावल (कुछ परमाणु लोथल से) बाजरा, मटर, तिल।
फल और सब्जियां: खजूर, खरबूजा, तरबूज, अंगूर, प्याज, लहसुन।
पशुपालन से प्राप्त आहार: दूध, दही, घी और मांस। बैल, भैंस, बकरी, भेंड, सुअर पाले जाते थे।
मछली और शिकार: तटीय क्षेत्र में मछली और जलीय जीव भोजन का हिस्सा थे।
पकाने के साधन: मिट्टी के बर्तन, चूल्हे और तंदूर का प्रयोग।
मनोरंजन
खेल और खिलौने: मिट्टी की गाड़ियां, बैलगाड़ियां, गेंद, पासा और शतरंज जैसे खेलो के प्रारंभिक रूप।
संगीत और नृत्य: नृत्य करती युक्ति की कांस्य मूर्ति से नृत्यकला का ज्ञान मिलता है। मिट्टी की बनी बांसुरी और अन्य वाद्य यंत्रों के प्रमाण भी हैं।
शिकार और पशु दौड़: शिकार और पशु रेस मनोरंजन का हिस्सा थे।
सामाजिक आयोजन: त्योहार, धार्मिक अनुष्ठान और सामूहिक स्नान।
कला-कौशल: मूर्तिकला, मिट्टी के बर्तनों पर चित्रकारी, मनके बनाने का कार्य भी मनोरंजन और पेशा दोनों था।
हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख धार्मिक विश्वास
हड़प्पा सभ्यता का धर्म प्रकृति-आधारित, जीववादी और प्रतीकात्मक था। यहाँ के धार्मिक विश्वासों के प्रमाण मुख्य रूप से मोहरों, मूर्तियों, मुहरों पर उकेरे गए चित्र, और खुदाई में मिले अवशेषों से प्राप्त होते हैं।
1. मातृदेवी पूजा
- खुदाई के दौरान, मिट्टी और पत्थर की बनी मातृदेवी (Mother Goddess) की अनेक मूर्तियाँ मिली हैं, जिनमें एक स्त्री को उर्वरता के प्रतीक के रूप में दर्शाया गया है।
- यह देवी संभवतः फसल और प्रजनन की अधिष्ठात्री मानी जाती थी।
- उर्वरता और कृषि की समृद्धि के लिए मातृदेवी की पूजा की जाती थी।
2. पशु पूजा
- मोहरों पर बैल, बकरी, बाघ, हाथी, गैंडा, और भैंस के चित्र मिलते हैं, जो इनके पूजनीय होने का संकेत देते हैं।
- एक प्रमुख मुहर पर "एक सींग वाले पशु" का चित्र मिला है, जो संभवतः किसी पौराणिक या प्रतीकात्मक पशु की पूजा दर्शाता है।
- बैल और नंदी की पूजा के प्रमाण भी मिलते हैं, जो बाद में वैदिक परंपरा में शिव से जुड़ गए।
3. प्राकृतिक तत्वों की पूजा
- पीपल का वृक्ष: मोहरों पर पीपल के पेड़ की आकृति, जिसके नीचे पूजास्थल दर्शाया गया है।
- जल और अग्नि: स्नानागार (मोहनजोदड़ो) और अग्निकुंड (कालीबंगन) से जल और अग्नि पूजन के प्रमाण मिलते हैं।
- पर्वत और सूर्य: कुछ मुहरों पर पर्वत, सूर्य और नदियों जैसे प्रतीक अंकित हैं, जो प्रकृति पूजन की ओर संकेत करते हैं।
4. अंत्येष्टि प्रथा
हड़प्पा में तीन प्रमुख अंत्येष्टि विधियों के प्रमाण मिले हैं:
1. समाधि: मृतक को जमीन में गाड़कर दफनाना।
2. दाह संस्कार: शव को जलाकर अस्थियाँ मिट्टी में दबाना।
3. आंशिक दाह: केवल कुछ अंगों को जलाकर शेष दफनाना।
समाधि में मृतक के साथ मिट्टी के बर्तन, आभूषण, और भोजन रखा जाता था, जो परलोक में उपयोग की धारणा को दर्शाता है।
हड़प्पा सभ्यता पतन के कारण
हड़प्पा सभ्यता का पतन लगभग 1900 ईसा पूर्व के आसपास शुरू हुआ और धीरे-धीरे इसके नगर उजड़ गए। हड़प्पा सभ्यता के पतन के पीछे कोई एक कारण नहीं था। इस सभ्यता के पतन के पीछे अनेक कारण थे। पुरातत्व और वैज्ञानिक अनुसंधान बताते हैं कि प्राकृतिक और मानवीय दोनों कारणों ने इस सभ्यता को पतन की ओर धकेल दिया, जो निम्न कारण इस प्रकार से हैं।
1. जलवायु परिवर्तन
- लगभग 2200–1900 ईसा पूर्व के बीच मानसून की तीव्रता में भारी गिरावट आई।
- सिंधु और सरस्वती नदियों में जल प्रवाह घटा, जिससे कृषि उत्पादन में कमी आई।
- सूखे और मरुस्थलीकरण के कारण वहां के लोगो को कई बस्तियों को छोड़ना पड़ा।
2. बाढ़ या भूकंप
- विद्वानों और इतिहासकारों को कुछ क्षेत्रों में नदियों का मार्ग बदलने और बड़े पैमाने पर बाढ़ आने के प्रमाण मिले हैं।
- मोहनजोदड़ो में बाढ़ के कारण बार-बार मरम्मत और निर्माण के साक्ष्य हैं।
- भूगर्भीय अध्ययनों से संकेत मिलता है कि भूकंपों ने सरस्वती नदी का मार्ग बदल दिया, जिससे उसका जलस्तर घटा और बस्तियाँ जल संकट में आ गईं।
3. आर्यों का आक्रमण
- मैक्समूलर जैसे शुरुआती इतिहासकारों ने यह सिद्धांत दिया कि आर्यों ने आक्रमण कर हड़प्पा सभ्यता को नष्ट किया।
- पुरातात्विक साक्ष्यों में कुछ नगरों में आगजनी और हिंसा के संकेत मिले हैं, लेकिन आज अधिकांश विद्वान मानते हैं कि आर्य आक्रमण मुख्य कारण नहीं, बल्कि संभवतः पतन के बाद का एक परिणाम था।
4. अधिक जनसंख्या और संसाधनों की कमी
- बढ़ती जनसंख्या के कारण भूमि पर दबाव बढ़ा और खेती की उपज घटने लगी।
- लकड़ी, धातु और पानी जैसे संसाधनों की कमी ने आर्थिक संकट उत्पन्न किया।
- व्यापारिक मार्गों में रुकावट आने से आर्थिक गतिविधियाँ ठप हो गईं।
निष्कर्ष
हड़प्पा सभ्यता का पतन अचानक नहीं हुआ, बल्कि यह एक धीमी और क्रमिक प्रक्रिया थी, हड़प्पा सभ्यता का पतन लगभग 1900 ईसा पूर्व से 1300 ईसा पूर्व के मध्य में हुआ था, जिसमें जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदाएँ, आर्थिक संकट और बाहरी प्रभाव सभी ने मिलकर भूमिका निभाई।
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