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राष्ट्रीय खेल दिवस कब और क्यों मनाया जाता है

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29 अगस्त को मेजर ध्यानचंद की जयंती पर पूरे भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया जाता है। भारत एक ऐसा देश है जहां खेल सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं है बल्कि राष्ट्र की पहचान और युवाओं की प्रेरणा को  माना जाता है, क्रिकेट, हॉकी, बैडमिंटन, कबड्डी और एथलेटिक्स जैसे खेलों में भारतीय खिलाड़ियों ने पूरी दुनिया में नाम कमाया है और इन्हीं उपलब्धियां और महान खिलाड़ियों के योगदान को सम्मान देने के लिए हर साल राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया जाता है। यह दिन खेलो के महत्व को याद करने और युवाओं को खेलों में भाग लेने के लिए प्रेरित करने और उत्कृष्ट खिलाड़ियों को सम्मानित करने का अवसर होता है खास बात यह है कि यह दिन हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की याद में मनाया जाता है  राष्ट्रीय खेल दिवस कब मनाया जाता है हर साल 29 अगस्त को पूरे भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया जाता है यह तारीख इसलिए चुनी गई है क्योंकि इस दिन महान खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद का जन्म हुआ था वह ऐसे खिलाड़ी थे जिनकी हॉकी स्टिक से निकला हर शॉट दर्शकों को जादू जैसा लगता था। 29 अगस्त का दिन सिर्फ ध्यानचंद जी की याद में ही खास नहीं है बल्कि इस दिन पूर...

NCVT ITI Result जारी 2025, यहां से देखें अपना रिजल्ट

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NCVT ITI Result 2025 घोषित, छात्र Skill India Portal और ncvtmis.gov.in से अपना रिजल्ट देख सकते हैं। लंबे इंतज़ार के बाद NCVT (National Council for Vocational Training) ने आईटीआई (ITI) परीक्षा का परिणाम 28 अगस्त 2025 को जारी कर दिया गया है। लाखों छात्रों के लिए यह बड़ी खबर है क्योंकि अब वे आसानी से ऑनलाइन अपना रिजल्ट देख सकते हैं। यह रिजल्ट सीधे आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध है और सभी छात्र अपने रोल नंबर या रजिस्ट्रेशन नंबर की मदद से इसे डाउनलोड कर सकते हैं। रिजल्ट कब जारी हुआ है  एनसीवीटी आईटीआई का रिजल्ट 28 अगस्त 2025 को जारी किया गया। जैसे ही परिणाम घोषित हुआ, छात्र बड़ी संख्या में वेबसाइट पर पहुँचने लगे ताकि वे अपने अंक देख सकें। अपना रिजल्ट कहाँ देख सकते हैं  छात्रों को रिजल्ट चेक करने के लिए किसी दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ेगा। रिजल्ट सिर्फ ऑनलाइन उपलब्ध है और इसे देखने के लिए आपको NCVT की आधिकारिक वेबसाइट या Skill India Portal पर जाना होगा। दोनों पोर्टल पर रिजल्ट लिंक सक्रिय है। रिजल्ट कैसे देखें – स्टेप बाय स्टेप तरीका रिजल्ट देखने की प्रक्रिया बहुत आसान और सरल है- 1. सब...

गुलाम वंश का संस्थापक कौन था सम्पूर्ण जानकारी UPSC Notes

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गुलाम वंश का संस्थापक कुतुबुद्दीन ऐबक – UPSC Notes के लिए महत्वपूर्ण जानकारी दिल्ली सल्तनत भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो दिल्ली सल्तनत का पहला राजवंश गुलाम वंश था और गुलाम वंश को ममलुक वंश भी कहा जाता है इस वंश की स्थापना 1206 ईस्वी में कुतुबुद्दीन ऐबक ने की थी। इसलिए कुतुबुद्दीन ऐबक को गुलाम वंश का संस्थापक कहा जाता है। लेकिन कुतुबुद्दीन ऐबक गुलाम वंश का संस्थापक ऐसे ही नहीं बना। कुतुबुद्दीन ऐबक को दिल्ली की गद्दी तक पहुंचने की कहानी मोहम्मद गौरी से जुड़ी हुई है। क्योंकि कुतुबुद्दीन ऐबक मोहम्मद गौरी का गुलाम था और मोहम्मद गौरी ने भारत में मुस्लिम स्थापना की नींव रखी थी। कुतुबुद्दीन ऐबक कौन था। कुतुबुद्दीन ऐबक का जन्म लगभग 1150 ई के आसपास तुर्किस्तान में हुआ था। कुतुबुद्दीन ऐबक का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ लेकिन किस्मत ने उसे गुलामी के रास्ते पर भेज दिया कुतुबुद्दीन ऐबक का जीवन बहुत ही संघर्षों और कठिनाइयों से भरा हुआ था। कुतुबुद्दीन ऐबक गुलाम कैसे बना? कुतुबुद्दीन ऐबक का बचपन बहुत कम ही सुख में रहा। जब वह छोटा था तभी उसका परिवार आर्थिक तंगी में आ गया और उसे गुलाम बाज...

गुलाम वंश का अंतिम शासक कौन था - संपूर्ण जानकारी

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  शमसुद्दीन कैकूबाद, गुलाम वंश का अंतिम शासक था, जिसकी मृत्यु 1290 ईस्वी में हुई और इसके साथ ही दिल्ली सल्तनत में खिलजी वंश की शुरुआत हुई। गुलाम वंश जिसे ममलुक वंश भी कहा जाता है। यह वंश दिल्ली सल्तनत का प्रथम वंश था, और इस गुलाम वंश का शासन काल 1206 ई से 1290 ई तक चला । इस वंश नींव कुतुबुद्दीन ऐबक ने रखी थी, जो मोहम्मद गौरी का गुलाम था और बाद में वह मोहम्मद गौरी का सेनापति बन गया था। मोहम्मद गौरी की मृत्यु के पश्चात कुतुबुद्दीन ऐबक ने खुद को शासक घोषित कर लिया और दिल्ली सल्तनत की शुरुआत की। गुलाम वंश का शासन काल लगभग 84 वर्षों तक चला और इस दौरान गुलाम वंश में कई शासक बने जिनमें से इल्तुतमिश को सबसे सक्षम और संगठित शासक माना जाता है, और इसी गुलाम वंश के शासनकाल में रजिया सुल्तान दिल्ली सल्तनत की पहली महिला शासक बनी थी। जिन्हें आज भी उनकी बहादुरी और प्रशासनिक क्षमता के लिए याद किया जाता है। गुलाम वंश का अंतिम शासक गुलाम वंश का अंतिम शासक शमसुद्दीन कैकूबाद था। जिसने 1287 ईस्वी में गद्दी संभाली थी, समसुद्दीन कैकूबाद बलबन का पोता और नसरुद्दीन बुगरा खान का पुत्र था। जो सिंहासन प...

गुप्त साम्राज्य: उदय, विस्तार और पतन की सम्पूर्ण जानकारी

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  गुप्त साम्राज्य (320 ईस्वी – 550 ईस्वी) को भारत का स्वर्णिम युग कहा जाता है, जहां विज्ञान, साहित्य और कला का उत्कर्ष हुआ। भारत के इतिहास में कई ऐसे काल आए जिन्होंने राजनीति, समाज और संस्कृति में महत्वपूर्ण योगदान दिया। ऐसे ही काल में गुप्त साम्राज्य ने लगभग 4वीं से 6वीं शताब्दी तक शासन किया और इसे भारत का स्वर्णिम युग कहा जाता है। इस समय के शासकों ने कला, साहित्य, विज्ञान और प्रशासन में अपार उन्नति की। गुप्त साम्राज्य न केवल अपनी शक्ति और विस्तार के लिए प्रसिद्ध था, बल्कि इसने समाज में धार्मिक सहिष्णुता और सांस्कृतिक समृद्धि भी लाई। इस लेख में हम जानेंगे कि यह साम्राज्य कैसे उभरा, विस्तार किया और अंत में क्यों पतन हुआ, साथ ही इसके प्रशासन, संस्कृति और उपलब्धियों का भी संक्षिप्त परिचय मिलेगा।  गुप्त साम्राज्य का उदय  गुप्त साम्राज्य का उदय भारतीय इतिहास में एक नए अध्याय की शुरुआत माना जाता है। यह वह समय था जब मौर्य साम्राज्य और कुषाण साम्राज्य के पतन के बाद भारत राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहा था। छोटे-छोटे राज्य और गणराज्य आपस में संघर्ष कर रहे थे। ऐसे माहौल में गुप्त वंश ...

मौर्य साम्राज्य का उदय और पतन – सम्पूर्ण जानकारी

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  मौर्य साम्राज्य (322 ईसा पूर्व – 185 ईसा पूर्व) भारतीय इतिहास का पहला और सबसे बड़ा साम्राज्य था। भारत का प्राचीन इतिहास कई महान साम्राज्यों और राजवंशों की कहानियों से भरा हुआ है। इन सभी में मौर्य साम्राज्य का स्थान सबसे ऊँचा माना जाता है, क्योंकि यह पहला ऐसा साम्राज्य था जिसने पूरे भारतीय उपमहाद्वीप को एक राजनीतिक इकाई के रूप में जोड़ा। ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में चंद्रगुप्त मौर्य और उनके गुरु चाणक्य (कौटिल्य) की दूरदर्शिता और साहस ने इस साम्राज्य की नींव रखी। मौर्य वंश की खासियत केवल उसका विशाल क्षेत्रफल नहीं था, बल्कि उसका मजबूत प्रशासन, संगठित अर्थव्यवस्था, और सांस्कृतिक धरोहर भी थी। अशोक महान के समय यह साम्राज्य अपने चरम पर पहुँचा और भारत ही नहीं, बल्कि एशिया के अन्य देशों में भी शांति, धर्म और करुणा का संदेश फैलाया।  मौर्य साम्राज्य की स्थापना कब और कैसे हुई मौर्य साम्राज्य की स्थापना 322 ईसा पूर्व में चंद्रगुप्त मौर्य ने की। उस समय नंद वंश का शासन था, लेकिन उनकी कठोर कर नीतियों और जनता पर अत्याचार के कारण लोग असंतुष्ट थे। इस असंतोष का लाभ उठाकर चंद्रगुप्त मौर्य और उनके ...

वैदिक काल (1500–600 ईसा पूर्व): ऋग्वैदिक और उत्तरवैदिक काल का सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक जीवन व विशेषताएं और शिक्षा प्रणाली

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  वैदिक काल (1500–600 ईसा पूर्व) की प्रमुख विशेषताएं – ऋग्वैदिक काल और उत्तरवैदिक काल सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के पश्चात जिस नई सभ्यता का विकास हुआ उसे ही आर्य अथवा वैदिक सभ्यता या वैदिक काल के नाम से जाना जाता है यह सभ्यता हमारे धर्म दर्शन भाषा और समाज की जड़ों का मूल बिंदु है, वेद शब्द का अर्थ ज्ञान होता है इसीलिए इस सभ्यता को वैदिक काल या वैदिक सभ्यता कहा जाता है इस सभ्यता में रचित चार वेद ऋग्वेद सामवेद यजुर्वेद और अथर्ववेद मानव सभ्यता की सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण धार्मिक व साहित्यिक धरोहर माने जाते हैं। इस सभ्यता की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि यहां से भारतीय संस्कृति की आधारशिला रखी गई थी वैदिक काल के लोग इंद्र अग्नि वरुण और सोम जैसे देवताओं की पूजा करते थे तथा यज्ञ और हवन उनके धार्मिक जीवन का प्रमुख हिस्सा थे। वैदिक काल की समय अवधि वैदिक काल भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण चरण माना जाता है इस कल की समय अवधि लगभग 1500 ईसा पूर्व से 600 ईसा पूर्व तक मानी जाती है। वैदिक काल को दो हिस्सों में बांटा जाता है ऋग्वैदिक काल (1500 ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व तक) और उत्तर वैदिक काल (1000 ई...