मौर्य साम्राज्य का उदय और पतन – सम्पूर्ण जानकारी

 

मौर्य साम्राज्य का चित्र, चाणक्य और चंद्रगुप्त मौर्य के साथ सैनिक और हाथियों की सेना
मौर्य साम्राज्य (322 ईसा पूर्व – 185 ईसा पूर्व) भारतीय इतिहास का पहला और सबसे बड़ा साम्राज्य था।


भारत का प्राचीन इतिहास कई महान साम्राज्यों और राजवंशों की कहानियों से भरा हुआ है। इन सभी में मौर्य साम्राज्य का स्थान सबसे ऊँचा माना जाता है, क्योंकि यह पहला ऐसा साम्राज्य था जिसने पूरे भारतीय उपमहाद्वीप को एक राजनीतिक इकाई के रूप में जोड़ा। ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में चंद्रगुप्त मौर्य और उनके गुरु चाणक्य (कौटिल्य) की दूरदर्शिता और साहस ने इस साम्राज्य की नींव रखी।

मौर्य वंश की खासियत केवल उसका विशाल क्षेत्रफल नहीं था, बल्कि उसका मजबूत प्रशासन, संगठित अर्थव्यवस्था, और सांस्कृतिक धरोहर भी थी। अशोक महान के समय यह साम्राज्य अपने चरम पर पहुँचा और भारत ही नहीं, बल्कि एशिया के अन्य देशों में भी शांति, धर्म और करुणा का संदेश फैलाया। 

मौर्य साम्राज्य की स्थापना कब और कैसे हुई

मौर्य साम्राज्य की स्थापना 322 ईसा पूर्व में चंद्रगुप्त मौर्य ने की। उस समय नंद वंश का शासन था, लेकिन उनकी कठोर कर नीतियों और जनता पर अत्याचार के कारण लोग असंतुष्ट थे। इस असंतोष का लाभ उठाकर चंद्रगुप्त मौर्य और उनके गुरु चाणक्य (कौटिल्य) ने योजनाबद्ध तरीके से नंद वंश को पराजित किया।चाणक्य ने चंद्रगुप्त को राजनीतिक और सैन्य रणनीति सिखाई और चंद्रगुप्त ने मजबूत सेना तैयार की और धीरे-धीरे मगध पर कब्जा कर लिया।

322 ईसा पूर्व में नंद वंश का अंत हुआ और मौर्य वंश की स्थापना हुई।

मौर्य साम्राज्य का उदय

नंद वंश के पतन के बाद मौर्य साम्राज्य का उदय हुआ। उस समय मगध क्षेत्र भारत का सबसे शक्तिशाली क्षेत्र माना जाता था, लेकिन नंद शासकों की कठोर कर नीति और जनता पर अत्याचार से लोग असंतुष्ट थे। इस असंतोष का लाभ उठाकर चंद्रगुप्त मौर्य और उनके गुरु चाणक्य ने रणनीति बनाई और 322 ईसा पूर्व में नंद वंश को पराजित करके मौर्य वंश की स्थापना की।

चंद्रगुप्त मौर्य और साम्राज्य की स्थापना

चंद्रगुप्त मौर्य भारतीय इतिहास के पहले सम्राट थे जिन्होंने लगभग पूरे उत्तर भारत को एकजुट किया। वे साधारण परिवार से आए थे, लेकिन उनकी वीरता, साहस और नेतृत्व क्षमता ने उन्हें महान बनाया। सत्ता में आते ही उन्होंने एक मजबूत सेना खड़ी की और मगध सहित कई क्षेत्रों पर नियंत्रण स्थापित किया। चंद्रगुप्त का शासन संगठित प्रशासन और सशक्त शासन व्यवस्था के लिए जाना जाता है।

चाणक्य (कौटिल्य) की भूमिका

चंद्रगुप्त मौर्य की सफलता के पीछे सबसे बड़ा हाथ उनके गुरु चाणक्य (कौटिल्य) का था। चाणक्य न केवल एक महान शिक्षक थे, बल्कि राजनीति और कूटनीति के अद्भुत ज्ञाता भी थे। उन्होंने ही नंद वंश के अत्याचार को समाप्त करने की योजना बनाई और चंद्रगुप्त को सम्राट बनाने का सपना साकार किया। उनकी रचना अर्थशास्त्र उस समय के प्रशासन, अर्थव्यवस्था और राजनीति का वास्तविक चित्रण है, जो आज भी प्रासंगिक मानी जाती है।

यूनानी (सेल्युकस) के साथ संघर्ष और संधि

मौर्य साम्राज्य के शुरुआती दौर में चंद्रगुप्त का सामना सिकंदर के उत्तराधिकारी सेल्युकस निकेटर से हुआ। दोनों के बीच संघर्ष हुआ, जिसमें चंद्रगुप्त ने विजय प्राप्त की। युद्ध के बाद एक संधि हुई, जिसके तहत सेल्युकस ने सिंध, अफगानिस्तान और बल्ख का बड़ा हिस्सा चंद्रगुप्त को सौंप दिया। बदले में चंद्रगुप्त ने उन्हें 500 हाथी भेंट किए। इस संधि ने न केवल मौर्य साम्राज्य की शक्ति बढ़ाई, बल्कि भारत और यूनान के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों की नींव भी रखी।

मौर्य साम्राज्य का विस्तार

मौर्य साम्राज्य की नींव चंद्रगुप्त मौर्य ने रखी थी, लेकिन इसका विस्तार और स्थायित्व उनके उत्तराधिकारियों ने और मजबूत किया। चंद्रगुप्त के बाद उनके पुत्र बिंदुसार और फिर अशोक महान ने इस साम्राज्य को नए आयाम दिए। बिंदुसार ने दक्षिण की ओर साम्राज्य का विस्तार किया, वहीं अशोक महान ने इसे इतिहास का सबसे बड़ा और शक्तिशाली साम्राज्य बना दिया।

बिंदुसार का शासन

चंद्रगुप्त मौर्य के बाद उनके पुत्र बिंदुसार ने शासन संभाला। बिंदुसार को "अमित्रघात" (शत्रुओं का संहारक) कहा जाता था।

  • उन्होंने साम्राज्य की सीमाओं को दक्षिण भारत तक बढ़ाया।
  • बिंदुसार ने दक्कन क्षेत्र के कई राज्यों को मौर्य साम्राज्य के अधीन किया।
  • वे एक सक्षम प्रशासक माने जाते थे और उनके शासनकाल में साम्राज्य की आंतरिक व्यवस्था भी मजबूत हुई।

हालाँकि, बिंदुसार अशोक जितने प्रसिद्ध नहीं हुए, लेकिन उन्होंने मौर्य साम्राज्य को स्थिरता और निरंतरता प्रदान की।

अशोक महान का उदय

बिंदुसार के बाद उनके पुत्र अशोक मौर्य साम्राज्य के शासक बने। शुरूआती समय में अशोक एक पराक्रमी और कठोर शासक के रूप में जाने जाते थे।

  • अशोक ने बिंदुसार की मृत्यु के बाद राजगद्दी संभाली और सत्ता को अपने नियंत्रण में लेने के लिए कई संघर्ष किए।
  • वे युद्धकौशल और राजनीतिक चतुराई के लिए प्रसिद्ध थे।
  • शासन की शुरुआत में उन्होंने साम्राज्य को और भी अधिक शक्तिशाली और विस्तृत बनाया।

अशोक की सबसे बड़ी पहचान उनके द्वारा लड़ा गया कलिंग युद्ध और उसके बाद किए गए जीवन-परिवर्तनकारी निर्णय हैं।

कलिंग युद्ध और उसके परिणाम

261 ईसा पूर्व में अशोक ने कलिंग (वर्तमान उड़ीसा) पर आक्रमण किया।

  • यह युद्ध बहुत ही भयंकर था और इसमें लाखों लोगों की मृत्यु हुई।
  • युद्ध की विभीषिका देखकर अशोक का हृदय बदल गया।

परिणाम

  • युद्ध के बाद अशोक ने हिंसा का त्याग कर दिया।
  • उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया और “धम्म नीति” के प्रचार-प्रसार को अपना जीवन लक्ष्य बना लिया।
  • अशोक ने अपने साम्राज्य में शांति, अहिंसा और करुणा का संदेश फैलाया।
  • बौद्ध धर्म भारत से बाहर श्रीलंका, नेपाल, तिब्बत, म्यांमार और चीन तक पहुँचा।

कलिंग युद्ध ने न केवल अशोक के जीवन को बदल दिया, बल्कि मौर्य साम्राज्य को भी आध्यात्मिक और नैतिक ऊँचाइयों पर पहुँचा दिया। 

मौर्य साम्राज्य की विशेषताएँ

मौर्य साम्राज्य भारतीय इतिहास का पहला ऐसा साम्राज्य था जिसने लगभग पूरे भारतीय उपमहाद्वीप को एक राजनीतिक इकाई के रूप में जोड़ दिया। इसकी खासियत केवल इसकी विशालता नहीं थी, बल्कि इसकी प्रशासनिक व्यवस्था, अर्थव्यवस्था, समाज और संस्कृति तथा कला और वास्तुकला में भी थी।

प्रशासनिक व्यवस्था

  • मौर्य साम्राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था काफी संगठित और व्यवस्थित थी।
  • राजा सर्वोच्च शासक माना जाता था और सभी निर्णयों का अंतिम अधिकार उसी के पास था।
  • चंद्रगुप्त और अशोक जैसे शासकों ने साम्राज्य को सुचारु रूप से चलाने के लिए अलग-अलग विभाग बनाए।
  • चाणक्य के अर्थशास्त्र में मौर्य प्रशासन का विस्तृत वर्णन मिलता है।
  • साम्राज्य को प्रांतों, जिलों और गांवों में बांटा गया था। प्रांतों के शासक राजकुमार या विश्वसनीय अधिकारी होते थे।
  • राजस्व वसूली, कानून व्यवस्था और जनता की देखरेख के लिए अधिकारियों की एक बड़ी टीम नियुक्त की जाती थी।

इस तरह की सुदृढ़ व्यवस्था ने मौर्य साम्राज्य को लंबे समय तक स्थिर बनाए रखा।

अर्थव्यवस्था और कर प्रणाली

  • मौर्य साम्राज्य की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि आधारित थी।
  • किसान भूमि की जुताई करते थे और फसल उत्पादन पर कर देना पड़ता था।
  • भूमि कर राज्य की सबसे बड़ी आमदनी का स्रोत था, जिसे "भाग" कहा जाता था।
  • व्यापार और वाणिज्य भी खूब फला-फूला। सड़कें और व्यापारिक मार्ग सुरक्षित थे, जिससे देशी और विदेशी व्यापार बढ़ा।
  • चांदी और तांबे के सिक्कों का प्रयोग व्यापार और कर वसूली में किया जाता था।

इस तरह, कर प्रणाली और आर्थिक गतिविधियों ने मौर्य साम्राज्य को एक समृद्ध और मजबूत राज्य बनाया।

समाज और संस्कृति

मौर्यकालीन समाज विविधतापूर्ण था लेकिन उसमें कुछ विशेषताएँ भी थीं—

  • समाज में सभी वर्गों और जातियों के लोग रहते थे।
  • बौद्ध और जैन धर्म का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा था, खासकर अशोक के समय में।
  • स्त्रियों की स्थिति अपेक्षाकृत सम्मानजनक थी, हालांकि पितृसत्तात्मक व्यवस्था मजबूत बनी रही।
  • शिक्षा और ज्ञान को महत्व दिया जाता था, विश्वविद्यालय और गुरुकुल प्रणाली समाज में प्रचलित थी।

संस्कृति में सहिष्णुता, धर्मों का सम्मान और एक-दूसरे के विचारों को स्वीकारने की प्रवृत्ति देखने को मिलती थी।

कला एवं वास्तुकला

मौर्यकालीन कला और वास्तुकला भारतीय इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय माना जाता है।

  • अशोक के समय में बने स्तंभ (Pillars) जैसे सांची और सारनाथ के स्तंभ आज भी मौर्य कला की महानता दिखाते हैं।
  • अशोक स्तंभ पर बना सिंहचिह्न (चार सिंहों वाला प्रतीक) आज भारत का राष्ट्रीय प्रतीक है।
  • गुफा वास्तुकला का भी विकास हुआ, जैसे बिहार की बाराबर गुफाएँ।
  • मौर्यकाल में पत्थर पर नक़्क़ाशी और मूर्तिकला का अद्भुत विकास हुआ।
  • अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए कई स्तूप (सांची स्तूप सबसे प्रसिद्ध) बनवाए। 

मौर्य साम्राज्य का स्वर्णिम युग

मौर्य साम्राज्य विशेषकर अशोक महान के समय अपने चरम पर पहुँचा। यह काल भारत के इतिहास में स्वर्णिम युग माना जाता है क्योंकि इस दौरान न केवल राजनीतिक स्थिरता और प्रशासनिक व्यवस्था मजबूत हुई बल्कि धर्म, संस्कृति, कला, और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का भी अद्भुत विकास हुआ।

अशोक के काल की विशेषताएँ

  • अशोक का शासन मौर्य साम्राज्य का सबसे स्थिर और समृद्ध काल माना जाता है।
  • अशोक ने हिंसा का त्याग कर "धम्म" को शासन की मूल नीति बनाया।
  • राज्य की सीमाएँ दक्षिण भारत और आधुनिक अफगानिस्तान तक फैली हुई थीं।
  • प्रशासनिक व्यवस्था अधिक संगठित और प्रभावी हो गई थी।
  • प्रजा के कल्याण के लिए अस्पताल, सड़कें, कुएँ और धर्मशालाएँ बनवाई गईं।
  • धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा दिया गया और सभी धर्मों को समान महत्व दिया गया।
  • किसानों और व्यापारियों को सुरक्षा और स्थिरता मिली जिससे अर्थव्यवस्था मजबूत हुई।
  • अशोक ने वन्य जीवों और पर्यावरण की रक्षा के लिए आदेश जारी किए।
  • युद्धों की बजाय शांति और अहिंसा को शासन का आधार बनाया गया।
  • अशोक ने "धम्म-महामात्र" नामक अधिकारी नियुक्त किए जो लोगों के नैतिक और सामाजिक जीवन की देखरेख करते थे।

बौद्ध धर्म का प्रसार

  • कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने बौद्ध धर्म को अपनाया और उसका प्रचार-प्रसार किया।
  • तीसरी बौद्ध संगीति (सम्मेलन) का आयोजन अशोक के समय पाटलिपुत्र में हुआ।
  • बौद्ध धर्म को दक्षिण भारत, श्रीलंका, अफगानिस्तान, नेपाल और मध्य एशिया तक फैलाया गया।
  • अशोक ने अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका भेजा जहाँ बौद्ध धर्म गहराई से स्थापित हुआ।
  • बौद्ध भिक्षुओं को आर्थिक सहायता और संरक्षण प्रदान किया गया।
  • बौद्ध धर्म के "अष्टांगिक मार्ग" और "अहिंसा" को राज्य की नीतियों में शामिल किया गया।
  • बौद्ध विहार और स्तूपों के निर्माण से बौद्ध संस्कृति को बढ़ावा मिला।
  • अशोक ने बौद्ध धर्म को आम जनता की भाषा (प्राकृत) में प्रचारित किया ताकि हर वर्ग उसे समझ सके।
  • विदेशों में बौद्ध धर्म के प्रचार से भारत की सांस्कृतिक पहचान और प्रतिष्ठा बढ़ी।
  • अशोक स्वयं को "धम्म का सेवक" मानता था, जिससे जनता को नैतिक आदर्श मिला।

अशोक के शिलालेख और स्तंभ

  • अशोक ने अपने संदेश शिलालेखों और स्तंभों पर खुदवाए।
  • ये लेखन अधिकतर प्राकृत भाषा और ब्राह्मी लिपि में थे।
  • शिलालेख और स्तंभ पूरे साम्राज्य में लोगों को शासन की नीतियों से अवगत कराते थे।
  • इनमें अहिंसा, सत्य, करुणा और धार्मिक सहिष्णुता का संदेश दिया गया।
  • दिल्ली, सारनाथ, लौरिया नंदनगढ़ और ऋषिपटन के स्तंभ प्रमुख उदाहरण हैं।
  • शिलालेखों से प्रजा को नियम, धर्म और नैतिक जीवन के बारे में जानकारी दी जाती थी।
  • कुछ शिलालेखों में पशु और पक्षियों की रक्षा पर भी विशेष बल दिया गया है।
  • अशोक के स्तंभों पर सिंह, बैल, हाथी और अन्य प्रतीकों का अंकन भारतीय कला की उत्कृष्टता को दर्शाता है।
  • अशोक स्तंभ का "सिंह शीर्ष" आज भारत का राष्ट्रीय प्रतीक है।
  • ये शिलालेख और स्तंभ अशोक के युग की प्रशासनिक, धार्मिक और सांस्कृतिक झलक प्रस्तुत करते हैं।

मौर्य साम्राज्य का पतन

मौर्य साम्राज्य भारतीय इतिहास का एक महान अध्याय था, जिसने भारत को पहली बार एक विशाल केंद्रीकृत शासन के अंतर्गत लाया। लेकिन अशोक महान के बाद धीरे-धीरे इस साम्राज्य की शक्ति कमजोर पड़ने लगी और अंततः यह इतिहास के पन्नों में विलीन हो गया। आइए बिंदुवार समझते हैं:

अशोक के बाद शासक

  • अशोक के बाद साम्राज्य कई हिस्सों में बंट गया और उनकी संतानों में योग्य नेतृत्व की कमी रही।
  • उनके उत्तराधिकारी कमजोर और महत्वाकांक्षाहीन थे, जिनमें साम्राज्य को संभालने की क्षमता नहीं थी।
  • अशोक के तुरंत बाद उनका पुत्र कुनाल शासन संभालता है, लेकिन वह ज्यादा प्रभावी शासक नहीं था।
  • उसके बाद दशरथ, सम्प्रति, शालिशूक, देववर्मन, सातधन्वन और बृहद्रथ जैसे शासक आए, लेकिन इनकी नीतियों ने साम्राज्य को और कमजोर किया।
  • इनमें केवल सम्प्रति का नाम थोड़ा प्रसिद्ध है, क्योंकि उसने जैन धर्म का संरक्षण किया।

साम्राज्य के पतन के कारण

केंद्रिय सत्ता की कमजोरी: अशोक के बाद मजबूत और दूरदर्शी नेतृत्व का अभाव था।

प्रशासनिक विकेंद्रीकरण: विशाल साम्राज्य को संभालने में कठिनाई होने लगी और प्रांत स्वतंत्रता की ओर बढ़ने लगे।

आर्थिक संकट: कलिंग युद्ध और अशोक की धर्म नीतियों ने अर्थव्यवस्था को कमजोर कर दिया।

सैन्य शक्ति का ह्रास: शांति और अहिंसा की नीति अपनाने से सेना की ताकत घटने लगी।

विद्रोह और बगावत: उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में यूनानियों, शक और कुषाणों ने धीरे-धीरे आक्रमण शुरू कर दिए।

धर्म नीति का प्रभाव: अशोक द्वारा बौद्ध धर्म को बढ़ावा देने से ब्राह्मणों और हिन्दू समाज के एक वर्ग में असंतोष पैदा हुआ।

स्थानीय शासकों का उदय: आंध्र, शुंग और सातवाहन जैसे नए शासक उभरने लगे, जिससे मौर्य सत्ता कमजोर हो गई।

अत्यधिक विशाल साम्राज्य: इतना बड़ा साम्राज्य एक ही प्रशासन और एक ही शासक के लिए लंबे समय तक चलाना कठिन था।

राजकोष पर बोझ: अशोक के बाद कर संग्रहण में गड़बड़ियां होने लगीं और खजाना खाली होने लगा।

विदेशी आक्रमण: उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में यवन (यूनानी) और शक धीरे-धीरे भारत में प्रवेश करने लगे।

अंतिम मौर्य शासक

  • मौर्य साम्राज्य का अंतिम शासक बृहद्रथ था।
  • उसके शासन काल में साम्राज्य बहुत कमजोर हो चुका था और अधिकांश प्रांत स्वतंत्र हो गए थे।
  • बृहद्रथ की हत्या उसके ही सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने 185 ई.पू. में कर दी।
  • इसके साथ ही मौर्य साम्राज्य का अंत हो गया और भारत में शुंग वंश का उदय हुआ।

निष्कर्ष

मौर्य साम्राज्य भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। चंद्रगुप्त मौर्य ने इसकी नींव रखी, बिंदुसार ने इसे स्थिरता दी और अशोक महान ने इसे चरम पर पहुँचाया। अशोक के समय बौद्ध धर्म का प्रसार हुआ और भारत में शांति, धर्म और नैतिकता का आदर्श स्थापित हुआ। हालांकि, अशोक के बाद कमजोर शासकों और प्रशासनिक कठिनाइयों के कारण साम्राज्य धीरे-धीरे पतन की ओर चला गया। फिर भी, मौर्य साम्राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था, कला, संस्कृति और धर्म पर इसका गहरा प्रभाव आज भी दिखाई देता है।


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